Indelible ink - अमिट स्याही

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 Indelible ink - अमिट स्याही


Indelible ink
चुनाव के दौरान पोलिंग बूथ पर वोट देने से पहले वोटरों के बाई हाथ के उंगली पर एक स्याही लगाई जाती है, ताकि वोटर दोबारा वोट न दे सके और चुनाव में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी न हो। यह स्याही (Indelible ink) अमिट स्याही कहलाती है। 


जो भारत में सिर्फ कर्नाटक राज्य के मैसूर में मैसूर पेंट्स और वार्निश लिमिटेड द्वारा बनाया जाता है। यह स्याही राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला द्वारा विकसित किया गया है और स्याही बनाने की रायायनिक प्रक्रिया गोपनीय रही गई है। इस स्याही बनाने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) द्वारा इसका एक विशेष लाइसेंस भी दिया गया है। जब यह बोतल के अंदर होता है तो स्याही रंग में बैंगनी होती है। 

सन् 1937 में इस कंपनी की स्थापना मैसूर के महाराजा नलवाड़ी कृष्णाराज वोडेयार ने मैसूर लाक फैक्ट्री के रूप में किया था। जिसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों इस्तेमाल कर स्थानीय स्तर पर बेरोजगारों को रोजगार देना था। 1947 में देश की आजादी के साथ ही यह फैक्ट्री कर्नाटक सरकार की सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी बन गई। कंपनी ने लाक के साथ पेंट का उत्पादन की शुरूआत की और इसका नाम बदलकर मैसूर लाक एंड पेंट वर्क्स लिमिटेड रखा गया। 
सन् 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार इस कंपनी में बनी (Indelible ink)  अमिट स्याही का इस्तेमाल किया गया था और तब से भारत में होने वाले सभी चुनाव में इसी स्याही इस्तेमाल किया जा रहा है। शुरुआत में कंपनी द्वारा कांच की बोतलों में इस स्याही पैकिंग की जाती थी। लेकिन कांच के बोतलों में लीकेज और ब्रेकेज के कारण 1979 से एम्बर रंग की प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल किया जा रहा है। 1989 कंपनी ने वार्निश बनाने की शुरूआत की और एक बार फिर कंपनी का नाम बदलकर मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीपीएल)  रखा गया। मैसूर पेंट्स और वार्निश लिमिटेड को एशिया में अमिट स्याही का सबसे बड़ा निर्माता माना जाता है। ये दुनिया के 35 देश में अमिट स्याही निर्यात भी करता है।  यह इंक भारत के साथ 1962 के बाद दुनिया भर में डेमोक्रेटिक चुनावों के लिए सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड और समर्थन भी है। यह कंपनी रासायनिक प्रतिरोधी पेंट्स, तामचीनी, डिस्पर, प्राइमर्स, डाक टिकट रद्दीकरण, सीलिंग मोम, और पॉलिश जैसे कई अन्य उत्पादों का निर्माण भी करती है।


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