ELECTION _ भारत में चुनाव - 1952 से अब तक का सफर

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 भारत में चुनाव - 1952 से अब तक का सफर


ईवीएम & वीवीपीएटी

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्रिक देश है। जहां जनता अपनी सरकार का चुनाव स्वयं करती हैं। और इस चुनाव की प्रक्रिया में समय-समय पर जरूरी सुधार होते रहे है। जहां हम पहले बैलेट बाक्स में अपना वोट देकर अपनी सरकार चुनते थे, वहीं आज हम बटन दबाकर अपनी सरकार का चुनाव करते है।
स्वतंत्र भारत के पहले दो चुनाव याने कि 1952 और 1957 में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अलग-अलग मतपेटी दी जाती थी। जिसमें उम्मीदवार का चुनाव चिन्ह होता था। मतदाता अपने पसंद के उम्मीदवार के मतपेटी में अपना मतपत्र दे कर चुना करते थे। 

लेकिन इस प्रणाली से गड़बड़ी की आशंका बनी रहती थी। जिसके कारण सन् 1960-61 में केरल और उड़ीसा विधानसभा के मध्यवधि चुनाव के दौरान मतपत्रों पर अपने भरोसेमंद उम्मीदवार के चुनाव चिन्ह पर निशान लगाकर मतपेटी में मतपत्र डालने का चलन शुरू हुआ। यह प्रणाली 1999 के लोकसभा चुनाव तक जारी रहा। लेकिन इसे में भी गड़बड़ी की आशंका और भारत में मतदाताओं की जनसंख्या बढ़ने के साथ ही इस प्रणाली में भी परिवर्तन करना पड़ा। और 1982 में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में पहली बार ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) का उपयोग किया गया। 
1977 में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचन को संचालित करने के लिए एक इलेक्ट्रानिक मशीन के बारे में सोचा गया। और इलेक्ट्रानिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद को निर्वाचन के लिए एक इलेक्ट्रानिक मशीन विकसित करने का काम दिया गया। 
इलेक्ट्रानिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद

1980 में एमबी हनीफा ने भारत में पहली इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का अविष्कार किया और 1982 में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में पहली बार ईवीएम का प्रायोगिक तौर पर उपयोग किया गया। 
हालाकि ईवीएम के उपयोग का कानून नहीं होने के कारण एसी जोस द्वारा दायर याचिका के कारण 5 मार्च 1984 में उच्चतम न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी। ईवीएम के संदेह को दूर करने के लिए भारत सरकार ने जनवरी 1990 में निर्वाचकीय सुधार समिति (ईआरसी) बनाई। समिति द्वारा तकनीकी विशेषज्ञों की टीम बनाकर ईवीएम की जांच कराई गई और जांच टीम ने इस तकनीक को सुरक्षित बताया। 
1998 से 2004 तक देश के विभिन्न राज्य विधानसभा और संसदीय चुनावों में ईवीएम का उपयोग किया गया। 2004 से 2014 तक हुए लोकसभा चुनाव में सभी संसदीय निर्वाचन क्षेत्रोें मेें ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था। निर्वाचन प्रक्रिया को और अधिक विश्वसनीय बनाने के लिए वीवीपीएटी (वोटर वेरीफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) का उपयोग 2013 में पहली बार नागालैंड में नोसेन विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के उप निर्वाचन में किया गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत देश के 8 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में ईवीएम के साथ वीवीपीएटी का उपयोग किया। लखनऊ, गांधीनगर, बैंगलोर दक्षिण, चेन्नई सेंट्रल, जादवपुर, रायपुर, पटना साहिब और मिजोरम निर्वाचन क्षेत्रों में शामिल है। 2017 में गोवा हुए विधानसभा चुनाव में ईवीएम के साथ वीवीपीएटी का पूरी तरह उपयोग किया गया। साथ ही 2019 के लोकसभा चुनाव में पूरी तरह ईवीएम के साथ वीवीपीएटी इस्तेमाल करने की घोषणा की गई है।


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